आज हम प्याज की खेती Onion Farming and onion seeds के बारे मे विस्तृत रूप से जानेंगे।
मिट्टी:
प्याज़ हर प्रकार की मिट्टी में उगाए जा सकते हैं। रेतीली मिट्टी को ज़्यादा और बार-बार सिंचाई की ज़रूरत पड़ती है और उसमें जल्द पकने वाली फ़सल उपयुक्त होती है, जबकि भारी मिट्टी में कंद विकृत हो जाते हैं, जिन्हें खोद कर निकालना ज़्यादा मुश्किल होता है। ज्यादा पैदावार और उत्तम कंद के लिए बलुई दोमट मिट्टी या चिकनी दोमट मिट्टी का सुझाव दिया जाता है। पीएच की उपयुक्त दर 5.8 से 6.5 के बीच होती है। ज़्यादा क्षारीय और लवणयुक्त मिट्टी प्याज़ की खेती के लिए उपयुक्त नहीं होती।
बीज दर
1.5 किग्रा/एकड़ या 2.5-3.75 किग्रा/हेक्टेयर।
(लगभग 2-2.5 लाख पौधे / प्रति एकड़ या 5 से 6.25 लाख प्रति हेक्टेयर)
तापमान: 20°C-25°C. (अंकुरण के लिए)
उन्नत किस्मे:
Nunhems Mata Hari seed-
गहरा लाल ग्लोब शेप
आकार- 40-70 मिमी
वजन- 80-175 ग्राम
एकल केंद्र मध्यम सुगंध
East West Prema Seed-
खरीफ फसल के लिए उपयुक्त
फल- लाल रंग का गोल
फल फलों का वजन- 70-80 ग्राम
परिपक्वता- 110 से 115 दिन
एक समान फल
East West Prerna seed -
रबी के लिए उपयुक्त है
फ्लैट गोल आकर्षक लाल बल्ब
फलों का वजन- 90-100 ग्राम
परिपक्वता- रोपाई के 115-120 दिन बाद
समान फल
Seminis XP Red- बल्ब Colour- डार्क रेड
बल्ब शेप- ग्लोबिश ग्लोब
बल्ब वजन- 120- 150 ग्राम
बल्ब का आकार- बहुत समान
परिपक्वता- रोपाई के 90-100 दिन बाद
टेस्ट- मीठा
Seminis Gulmohar-
रंग - समान लाल रंग
बल्ब शेप- फ्लैटिश ग्लोब
बल्ब वजन- 120-150 ग्राम
बल्ब का आकार- मध्यम आकार का
तीखापन- उच्च
परिपक्वता - रोपाई के 100 से 110 दिन बाद
बुवाई और रोपाई का समय:
मध्य-अक्टूबर से मध्य-नवंबर के बीच बीज बोएं और मध्य दिसंबर से मध्य जनवरी के बीच पौध रोपें। 10-15 सेमी ऊंचाई, 1.0-1.2 मी चौड़ाई तथा सुविधानुसार लंबाई वाली क्यारियाँ तैयार की जानी चाहिए। पानी देने, खरपतवार निकालने जैसी गतिविधियों के लिए 2 क्यारियों के बीच लगभग 70 सेमी की दूरी रखी जानी चाहिए।बुवाई 5-7 सेमी की दूरी पर बनाई गयी पंक्तियों में की जानी चाहिए। बुवाई के बाद बीजों को थोड़ा पानी देने के बाद बारीक गली हुई गोबर की खाद या कम्पोस्ट से ढंका जाना चाहिए। इसके बाद क्यारियों को सूखी पुआल या घास या गन्ने की पत्तियों या जूट शीट्स से ढंक देना चाहिए, ताकि उचित तापमान और नमी बनी रहे। अंकुरण पूरा होने तक पानी देने की प्रक्रिया आवश्यकतानुसार हज़ारे से पूरी की जानी चाहिए। सूखी पुआल या घास को अंकुरण पूरा होने के तुरंत बाद निकाल दिया जाना चाहिए। सूखी पुआल और घास को हटाने में देरी करने से कमज़ोर पौधे निकलते हैं। बुवाई के 400-50 दिन बाद पौधे रोपाई के लिए तैयार हो जाते हैं।
खेत की तैयारी:
कम से कम तीन वर्ष तक फ़सलें बदल-बदल कर लगाएं। रोपाई से पहले, खेत को अच्छी तरह जोता और काटा जाना चाहिए, ताकि अवशेष और मिट्टी के ढेले निकल जाएं। अंतिम जुताई के समय लगभग सड़ी-गली गोबर की खाद 15t/ हेक्टेयर या पोल्ट्री खाद 7.5t/हेक्टेयर या वर्मिकम्पोस्ट 7.5t/हेक्टेयर जैविक खाद अंतिम जुताई के समय शामिल की जानी चाहिए और ज़मीन को समतल करने के बाद उचित आकार की क्यारियाँ तैयार की जानी चाहिए। क्यारियाँ निम्नलिखित पद्धति से तैयार की जानी चाहिए: उचित दूरी और संख्या के घनत्व को प्राप्त करने 1.5-2.0 मीटर चौड़ाई एवं 4-6 मीटर लम्बाइ लिए तैयार किए जाते हैं। पानी भर कर सिंचाई करने के लिए उपयुक्त हैं
खाद और उर्वरक:
मिट्टी में इस्तेमाल: लगभग 15 टन सड़ी-गली गोबर की खाद के साथ 110 किग्रा N,40 किग्रा P205, और 60 किग्रा K20 प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होता है। पोषण की आवश्यकता मिट्टी के प्रकार, खेती के क्षेत्र, प्रकारों और मुख्य पोषक तत्वों के निकाले जाने पर आधारित होती है।
• मिट्टी में 25 किग्रा/हेक्टेयर से ज़्यादा सल्फर होने पर 15 किग्रा सल्फर/हेक्टेयर पर्याप्त होती है, जबकि 25 किग्रा/हेक्टेयर से कम सल्फर वाली मिट्टी के लिए 30 किग्रा सल्फर/हेक्टेयर की ज़रूरत होती है।
जिंक की कमी वाले क्षेत्रों में मूल खुराक के रूप में 10 किग्रा/हेक्टेयर की दर से ZnSO4 का सुझाव दिया जाता है।
बोरॉन की कमी वाले क्षेत्रों में मूल खुराक के रूप में 10 किग्रा/हेक्टेयर की दर से बोरैक्स का सुझाव दिया जाता है।
मिट्टी में बहुत सारे पोषक तत्वों की कमी होने पर 20 t/हेक्टेयर की दर से सड़ी-गली गोबर की खाद का सुझाव दिया जाता है।
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टपक सिंचाई वाली फसल के लिए
80 किग्रा यूरिया, 32.8 किग्रा एमएपी और 33.6 किग्रा एमओपी (सफेद) प्रति हेक्टेयर की दर से, पौध रोपाई के एक महीने तक हर दूसरी सिंचाई 4 दिन के अन्तराल पर सात बराबर भागों में बाटकर टपक सिंचाई के साथ डालनी चाहिए। उर्वरकों की शेष मात्रा 317.5 किग्रा यूरिया, 131.25 किग्रा एमएपी (मोनोअमोनियम फॉस्फेट), 135.15 किग्रा एमओपी प्रति हेक्टेयर फसल के शेष मौसम के दौरान हर दूसरी सिंचाई में 20 समान भागों में डाली जानीचाहिए।
दूरी
दूरी कंद के प्रकार और आकार पर निर्भर करती है। सामान्य बड़े प्याज़ में पंक्ति से पंक्ति के बीच 15 सेमी और पौधे से पौधे के बीच 10 सेमी की दूरी रखी जाती है। पंक्तियों के बीच 15 सेमी और पौधों के बीच 7.5 सेमी की करीबी रोपाई ज्यादा पैदावार के लिए सबसे ज्यादा सहायक होती है।
खरपतवार नियंत्रण:
खरपतवार पानी, मिट्टी के पोषक तत्वों, रोशनी और जगह के लिए प्याज़ की फ़सल के साथ प्रतिस्पर्धा करते हैं। प्याज़ पर खरपतवार की प्रतिस्पर्धा का प्रभाव अन्य फसलों के मुकाबले कहीं ज्यादा पड़ता है, जिसके मुख्य कारण हैं शुरुआती चरणों में इसके विकास की धीमी रफ्तार और कम ऊंचाई, शाखाएँ न होना, पत्तियाँ कम होना और जड़ें ज्यादा गहरी न होना। प्याज़ की ज्यादा बिक्री योग्य पैदावार पाने के लिए शुरुआती चरण में खरपतवार पर नियंत्रण आवश्यक है।
पुरानी पद्धतियों के साथ खरपतवार पर रासायनिक नियंत्रण किफायती होता है। खरपतवार पर उत्तम नियंत्रण के लिए रोपाई से पहले या रोपाई के समय ऑक्सीफ्लोरफैन @ 23.5% EC (1.5-2.0 ml